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उलमा की ग़लतीयां और सलफ़ का रवय्या


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۞ सईद इब्न-उल-मुसय्यिब (ताबईन 93 हिजरी) फरमाते है,

“कोई भी उलमा या नेक शख्स या इज़्ज़तदार शख्स ऐसा नहीं है कि उसमें कोई ग़लती ना पाई जाती हो। अलबत्ता जब किसी शख्स की नेकी उसकी ग़लतीयों से ज़्यादा हो जाती है तो फिर उसकी ग़लती उसकी नेकी की वजह से साफ हो जाती है।
इसी तरह, जब किसी शख्स की ग़लती उसकी नेकी से ज़्यादा हो जाती है, तो फिर उसकी नेकी उसकी ग़लती की वजह से साफ हो जाती है। किसी और ने कहा है कि कोई भी उलेमा ग़लती से पाक नहीं है। अगर वह ग़लती करता है और वह अक्सर सहीह होता है, फिर वह आलिम है लेकिन एक शख्स जो कभी कदार सहीह होता है लेकिन वह अक्सर ग़लती करता है तो वह जाहिल (कम इल्म) है।”

जामिउल बयान लिल इल्म व फजि़्लही (जिल्द 2, सफहा 48).

۞ अब्दुल्लाह इब्न उल मुबारक (ताबे-ताबईन, 181 हिजरी) फरमाते है,

“अगर किसी शख्स की नेकी उसकी ग़लतीयों से ज़्यादा है, तो उसकी ग़लतीयों को याद नहीं किया जाता। लेकिन अगर उसकी ग़लतियां उसकी नेकियों से ज़्यादा है, फिर उसकी नेकियों को याद नहीं किया जाता।”

सैर उल आलाम अन नुबला (जिल्द 8, सफहा 352).

۞ ईमाम अहमद (तबे-ताबईन, 241 हिजरी) कहते है, 

“खुरासान के इशाक़ (बिन राहावायही) की तरह कोई नहीं है, हालांकि उन्होंने हम लोगों से कुछ चिज़ों में इख्तलाफ किया था। (लेकिन) लोगे (तो) हमेशा एक दुसरे से इख्तलाफ करते रहेगें।”

सैर उल आलाम अन नुबला (जिल्द 11, सफहा 371).

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