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दीन की बातें बताने के लिए सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं होती


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सवाल - अस सलामो अलैयकुम वरहमतुल्लाह शेख। क्या दीन बताने या सिखाने के लिए किसी मदरसे या यूनिवर्सिटी के सर्टिफिकेट का होना ज़रूरी है? बरा ए महरबानी जवाब ईर्शाद फरमा दीजिए। अल्लाह आपके इल्म में इज़ाफा करें।

अलहमदुलिल्लाह..

कुरआन ए हकीम में हमें कही भी यह नहीं मिलता कि दीन की बातें बताने या सिखाने के लिए आपको किसी मदरसे या यूनिवर्सिटी के सर्टिफिकेट का होना ज़रूरी है। बल्कि अल्लाह फरमाते है,

۩ और उससे बेहतर किसकी बात है जो लोगों को अल्लाह की तरफ बुलाता है, नेक काम करता है और कहता है कि मैं मुसलमानों में से हूं।

सुरह फुस्सिलात (41), आयत-33.

۩ तुम बेहतरीन उम्मत हो जो लोगों के लिए पैदा किये गये हो। तुम नेक बातों का हुक्म देते हो और बुरी बातो से रोकते हो और अल्लाह तआला पर ईमान रखते हो। 

सुरह आले इमरान (3), आयत- 110.

इन आयतों में अल्लाह तआला ने पूरी उम्मत को एक आम इजाज़त दी है कि वह लोगों को दीन की तरफ दावत दें। अब आइये देखते है कि हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें इस बारे में क्या बाते बतायी है। 

۩ حَدَّثَنَا أَبُو عَاصِمٍ الضَّحَّاكُ بْنُ مَخْلَدٍ، أَخْبَرَنَا الأَوْزَاعِيُّ، حَدَّثَنَا حَسَّانُ بْنُ عَطِيَّةَ، عَنْ أَبِي كَبْشَةَ، عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو، أَنَّ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم قَالَ ‏"بَلِّغُوا عَنِّي وَلَوْ آيَةً، وَحَدِّثُوا عَنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَلاَ حَرَجَ، وَمَنْ كَذَبَ عَلَىَّ مُتَعَمِّدًا فَلْيَتَبَوَّأْ مَقْعَدَهُ مِنَ النَّارِ" -

۩ अब्दुल्लाह इब्ने अम्र रज़िअल्लाहु तआला अन्हु रिवायत करते हे कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, “पहुंचा दो मेरी तरफ से वह क्या ना एक आयत ही हो, और बनी इसराईल के वाक़ियात तुम बयान कर सकते हो, इसमें कोई हर्ज नहीं और जिसने मुझ पर जान बुझ कर झुट बांधा तो उसे अपने जहन्नम के ठिकाने के लिए तैयार रहना चाहिए।”

सहीह अल बुखारी, किताब आहदीस अन्नबी (60), हदीस-3461.

यह हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक सादा (simple) सा हुक्म है कि अगर हमें एक आयत भी आती है तो हम उसे दुसरों तक पहुंचाये। रसूल ने यहां पर ना तो किसी डिग्री का ज़िक्र किया और ना ही किसी मदरसे या यूनिवर्सिटी का। अब आईये देखते है कि हमारे अहले इल्म इस मौज़ु पर हमें क्या नसीहत करते है।

۩ इमाम इब्ने हजर अस्क़लानी रहमतुल्लाह अलैय, फतहुल बारी में लिखते है:

“इस हदीस में “(पहुंचा दो मेरी तरफ से) चाहे वह एक आयत ही क्यों ना हो” से मुराद यह है कि हर शख्स जिसने जो भी बात उनसे (रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से) सुनी हो, चाहे कितनी ही थोड़ी हो, वह लोगों तक पहुंचाने की जल्दी कोशिश करे, इस तरह से हर चीज़ जो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लेकर आये थे, वह लोगों तक पहुंच जायेगी।”

फतहुल बारी इमाम इब्ने हजर , किताब आहदीस अन्नबी (60), हदीस-3461.

۩ शेख इब्ने उसैमीन कहते है: 

“जब एक शख्स उस चीज़ की समझ रखता हे जिसकी तरफ वह लोगों को बुला रहा हे तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह बड़ा या मशहूर आलीम हो या दीन का सच्चा तालिब ए इल्म हो या एक आम सा आदमी हो जिसे कुछ इल्म हो उस मसअले मे जो सवाल पूछा जा रहा है।
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है, “पहुंचा दो मेरी तरफ से वह क्या ना एक आयत ही हो”, और उन्होंने यह शर्त नहीं रखी कि उस दाइयाह (लोगों को दीन की तरफ बुलाने वाले) को इल्म के आला दर्जे पर फाईज़ होनपा चाहिए, बस ज़रूरी है कि उसे उस बात का इल्म हो जिसकी तरफ वह बुला रहा है। लेकिन अपनी ला-इल्मी पर अपने जज़्बात की बिना पर लोगों को (दीन की तरफ) बुलाने की इजाज़त नहीं।”

फतावा उलमा अल-बलद अल-हराम, पेज 329.

۩ शैख सालेह अल मुनज्जिद फरमाते है:

“अल्लाह की तरफ लोगों को बुलाना सबसे बेहतरीन और अज़ीम अमल है अल्लाह सुब्हानहु व तआला के यहां। जब यह फरीज़ा नबीयों और रसूलों का है जिन्हें अल्लाह ने मखलूक में से चुना तो यह फरिज़ा उनके (नबीयों और रसूलों के) वारीसों का कैसे नहीं हो सकता है जो कि उलमा और दाईया है।
यह ज़रूरी है कि जो शख्स लोगों को इस्लाम की तरफ बुला रहा हो उसके पास उस चीज़ की कुछ समझ ज़रूर हो जिसकी तरफ वह लोगों को बुला रहा हे, लेकिन इसकी ज़रूरत नहीं है कि उसे पूरे दीन का इल्म होना चाहिए क्योंकि अब्दुल्लाह इब्ने अम्र से बुखारी (3461) में रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, “पहुंचा दो मेरी तरफ से वह क्यों ना एक आयत ही हो”।


۩ शेख सालेह अल फौज़ान से सवाल किया गया, “मोअज़्ज़ शेख, अल्लाह आपको कामयाबी अता करे। क्या वह शख्स लोगों को दीनी मुआमलात की तालीम देना चाहता है, क्या यह काफी है कि उसके पास किसी यूनिवर्सिटी का सर्टिफिकेट हो या फिर उसके पास किसी उलमा की तरफ से तज़कियात (शाबाशी, तारीफ) के होने की ज़रूरत है ?”

शैख फरमाते है,

“इल्म का होना ज़रूरी है। हर शख्स जिसके पास सर्टिफिकेट है वह आलीम नहीं बन जाता है (सर्टिफिकेट होने की वजह से), (लेकिन) इल्म और अल्लाह के दीन की समझ (फिक़ह) ज़रूरी है। एक सर्टिफिकेट इल्म की निशानदेही नहीं करता। एक शख्स के पास (सर्टिफिकेट) होने के बावजुद वह लोगों में सबसे ज़्यादा जाहिल हो सकता है, और एक शख्स के पास सर्टिफिकेट ना होकर भी वह लोगों में सबसे ज़्यादा इल्म रखने वाला शख्स हो सकता है। क्या शेख इब्ने बाज़ के पास सर्टिफिकेट था? फिर ीाी वह इस वक्त के मारूफ (समंकपदह) ईमाम थे। लिहाज़ा यह तक़रीर एक शख्स के अंदर इल्म और समझ की मौजुदगी के इर्द-गिर्द घुमती है, उसके सर्टिफिकेट और तज़कियात पर नहीं, (सर्टिफिकेट और तज़कियात) पर ग़ौर नहीं किया जाता है। और हक़ीक़त एक शख्स को बे-नक़ाब कर देता है जब साथ में कोई मसअला आता है, या कोई मुसिबत आती है, फिर (सच्चा) आलीम और नाक़िल और जाहिल आलीम से वाज़ेह हो जाता है। जी हां!”

सोर्स: https://goo.gl/zd2F71

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अल्लाह से दुआ है कि वह हमें सिरात ए मुस्तिक़ीम अता करे। आमीन