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अल्हम्दुलिल्लाह
कुछ लोगो का कहना है कि सहाबा ने अक़ीदे में इख्तिलाफ नहीं किया जब की ये बात हदीस की दलील के खिलाफ है।
सहाबा ने अक़ीदह के छोटे (फुरू) मसाइल में इख्तिलाफ किया है और उन्होंने बुनयादी अक़ीदे (उसूल) में इख्तिलाफ नहीं किया है.
आइये इन इख्तिलाफ की दलील देखते है:
नबी ﷺ के वफ़ात के वक़्त उम्र र.ा. ने
बाकी साहबा से इख्तिलाफ करते हुए ये अक़ीदह अप्नाया की रसूलुल्लाह ज़िंदा है. हलाकि फिर उन्होंने इस बात से रुजू किया. देखें सहीह अल बुखारी, हदीस-३६६७, ३६६८
२.इब्न अब्बास र.अ. का ये अक़ीदह था की रसूलुल्लाह ﷺ ने अल्लाह को देखा है [जामिआ तिर्मिज़ी, किताब ात तफ़्सीर ﴾४७﴿, हदीस- ३२७९]. जब की आयेशा र.ा. और अक्सर सहाबा का ये अक़ीदह था की रसूलुल्लाह ﷺ ने अल्लाह को नही देखा [सहीह मुस्लिम, किताब अल ईमान ﴾१﴿, हदीस- ४३९]
उम्र र.ा. का ये अक़ीदह था की मय्यत पर नोहा करने से मय्यत को आज़ाब दिया जाता है (सहीह मुस्लिम, हदीस- ९२७). जब की आयेशा र.ा. का ये अक़ीदह नहीं था (सहीह मुस्लिम, हदीस- ९३२)
अब देखते है की हमारे उलेमा इस पर क्या कहते है:
۩ शेख़ इब्न उसैमीन फ़रमाते हैं,
का रास्ता अपनाया है उनलोगो ने हर उस शख्स को गुमराह कहना शुरू कर दिया जो उनसे इख्तिलाफ करता है यहाँ तक कि अगर वो शख्स सहीह हो, और कुछ लोगो ने
“हमारे इस दौर में कुछ लोग जिन्होंने सलफ़िययह हिब्ज़ का रास्ता अपनाया है जिस तरह से दूसरे गरोह (पार्टीज) ने अपनाया था जो अपने आप को मज़हब ए इस्लाम से होने का दवाह करते है। ये कुछ ऐसा है जो न-पसंदीदा है और जिसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती, और उनलोगो से ये कहना चाइये की सलफ ास सालेह के तरीके को देखो, वो क्या किया करते थे? उन के तरीके को देखो और कैसे वो खुले दिल के थे जब इख्तिलाफ की सूरत आती थी जिसमे इज्तिहाद जैज़ है (और इख्तिलाफ काबिले कुबूल है)।वह बड़े मसाइल में भी इख्तिलाफ करते थे, इमान (अक़ीदह) और अमल के मसाइल में. आप को कुछ चीज़े मिलेंगी, जैसे, रसूलुल्लाह ﷺ का अल्लाह को देखने पर इंकार करना जब कि दूसरो ने कहा कि उन्होंने देखा है। सपसद्दट अपने कुछ को ये कहते हुए देखा होगा कि क़यामत के दिन जो चीज़ को तौली (वेटेड) जायेगी वो है आमाल जब की दुसरे लोग कहते थे की वो तो आमाल की किताब है जो तौली जाएँगी। आप उन्हें देखेंगे की वो फ़िक़्ह के मुआमलो में भी काफी हद तक इख्तिलाफ करते थे, जैसे निकाह, विरासत का हिस्सा, खरीद और फ़रोख्क्त, और दूसरे मुआमलो में. लेकिन इस के बावजूद उन्होंने एक दूसरे को गुमराह नहीं कहा।”
लियाकत अल-बाप अल- मफतूह, ३/२४६
۩ शेख असीम अल-हकीम कहते हैं,
'सहाबा ए किराम अक़ीदह के इस मसले में इख्तिलाफ नहीं करते थे जैसे कि अल्लाह के मौजूद होने पर, जन्नत और दोजख, मरने के बाद की ज़िन्दगी, इमान के सुतून, अल्लाह के नाम और सिफ़त. लेकिन वो अक़ीदह के छोटे मसाइल में इख्तिलाफ करते थे.' (वीडियो क्लिप का सारांश)
स्रोत: https://youtu.be/w1LdUia1lVc
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