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पैदा हुए बच्चे के कान में अज़ान देना


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उलेमा ए कराम ने बच्चे के कान में अज़ान देने को सुन्नत कहा है, ता के जब दुनिया में वो आए और उसके कान खुले तो सबसे पहले वो तौहीद के कलिमाह को सुने और इसका बोहत ही अज़ीम और मुबारक असर पड़ेगा इन शा अल्लाह । लेकिन बाऐं कान में इकामत कहने का कोई सबूत नहीं है, ना ही किताब व सुन्नत से और ना ही इज्मा ए उम्मत से। [देखे सिलसिलत अल-दैफ़ा, १/४९१]।

आइये इसकी तफ़सील देखते हैं,

पैदा हुए बच्चे के कान में अज़ान के तल्लुक से एक हदीस मिलती है:

۩ उबैदुल्लाह बिन अबी रफ़ी रिवायत करते हैं, कि उनके वालिद ने कहा, "माई ने रसूलल्लाह ﷺ को देखा कि हसन र.अ. जब फातिमा र.अ. से पैदा हुए तो आप ﷺ ने हसन के कान में नमाज़ की अज़ान की तरह अज़ान दी।"

जामिया तिर्मिज़ी, बलिदान पर पुस्तक, हदीस- १५१४।

लेकिन इस हदीस के बारे में हमारे मुहद्दिसन में इख्तिलाफ़ है।

۞ जिन मुहद्दिसन ने इस हदीस को क़ुबूल किया:

۩ इमाम तिर्मिज़ी ने कहा:- हसन: [सुनन तिर्मिज़ी, १५१४]।

۩ इमाम नवावी ने कहा:- सहीह: [मजमू, ८/४३४]।

۞ जिन मुहद्दीसीन ने इस हदीस को क़ुबूल नहीं किया:

۩ मुबारकपुरी कहते हैं:- ज़ैफ़: [तुहफ़तुल अवध ४/४५५]।

۩ शेख ज़ुबैर अली ज़ै कहते हैं:- इस्नाद ज़ैफ़: [मिश्कात अल मसाबिह, १/६१४]

और अगर अक्सर मुहद्दिसन की बात की जाए तो हमारे अक्सर मुहद्दिसन ने इस रिवायत को कुबूल नहीं किया क्योंकि इसमें एक रावी है जिसका नाम आसिम बिन ओबैदअल्लाह है और इस रावी को हमारे अक्सर मुहद्दिसन ने ज़ैफ़ कहा है।

और इसी के लिए, ऐसी कोई सही हदीस मौजुद नहीं है जिसे हमको इस अमल की तालीम मिलती है। कुछ अहले इल्म का कहना है कि ये अमल उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ और इब्न अल-मुन्थिर और कुछ सलाफ़ ने किया था।

लेकिन हदीस के ना होने के बावजुद उम्मत का इज्मा है कि पैदा हुए बच्चे के कान में अज़ान देना मुस्तहब अमल है।

۩ इमाम तिर्मिज़ी फ़रमाते हैं,

"और इस पर अमल है"

जामी एट-तिर्मिधि, बलिदान पर पुस्तक, हदीस- १५१४।

यानी बच्चे के कानों में अज़ान देने पर उनके ज़माने के मुसलमानों का और उनसे पहले मुसलमानों का अमल था।

۩ इमाम सुयुति फ़रमाते हैं, "क्या अमल (बच्चे के कान में अज़ान देना) पर तलक़ी बिल क़ुबूल (इज्मा) हासिल है अगरचे हदीस की सनद सही नहीं है।"

तदरीब अर-राववी, १/६६.

۩ शेख ज़ुबैर अली ज़ै कहते हैं: "इस (हदीस में) आसिम बिन ओ'बैदअल्लाह ज़ैफ़ है और इस्का ज़ौफ़ (कमज़ोरी) जम्हूर के नाज़दीक मशहूर है। (लेकिन) पैदा होने वाले बच्चे के कान में अज़ान देना सही है ( और) बिना किसी इख्तिलाफ के सब इस पर अमल करते रहते हैं। शरीयत के इस अमल पर उलेमा ए इस्लाम का इज्मा है और ये तिर्मिज़ी में भी है।"

मिश्कातुल मसाबिह, खण्ड-२, पृष्ठ-६१४, फुटनोट नं. ३. [स्कैन]।

۩ इमाम मुस्लिम फ़रमाते हैं,

"एक मुसलमान इस दुनिया में अज़ान और इकामत के साथ आता है और वह इस दुनिया से जाता है नमाज और दुआ के साथ [जनाज़ा की नमाज और उसके बाद की दुआ]। नमाज ए जनाजा में न ही अजान होती है और न ही इकामत जिसकी बोहत गहरी अहमियत है। इसका मतलब ये है कि नमाज ए जनाज़ा की अज़ान और इकामत पैदाइश के वक्त ही कह दिया जाता है।"

सहीह मुस्लिम,  किताब अल जनाइज़ (अंतिम संस्कार प्रार्थना की पुस्तक) के शीर्षक के बाद इमाम मुस्लिम की टिप्पणियाँ।

लेकिन ये बात ध्यान रखे कि बच्चे के कान में इकामत कहना ना ही हदीस से साबित है और ना ही उम्मत के इज्मा से। जो एक हदीस मिलती है बच्चे के कान में इकामत के सिलसिले में शेख अल्बानी ने सिलसिलातुल अहादीस अद-दईफा #३२१ और अल-'इरवा' #११७४, मुझे ज़ैफ़ करार दिया है।

लिहाज़ा बच्चे के कान में अज़ान देना एक बेहतर अमल है।