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क्या मुस्लिम उम्मत शिर्क नहीं कर सकती?


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۩ हज़रत उकबा बिन आमीर रज़िअल्लाहु तआला अन्हं रिवायत करते है कि हुज़ुर नबी ए अकरम ﷺ ने फरमाया: मुझे तुम्हारे मुताअल्लिक इस बात का तो डर ही नहीं है कि तुम मेरे बाद शिर्क करोगे बल्कि मुझे डर है कि तुम दुनिया के लिये मुकाबला शुरू कर दोगे।

( बुखारी 1344, मुस्लिम 2296).

इस हदीस को उठा कर बाज़ लोग कहते है कि मुस्लिम उम्मत शिर्क नहीं कर सकती है। हालांकि यह सिवाए इल्म की कमी के कुछ नहीं है। बोहोत सी दुसरी हदीस है जो कहती है कि मुस्लिम उम्मत में से कुछ लोग शिर्क करेंगें।

यह हदीस पुरी उम्मत के लिए नहीं है बल्कि उम्मत के कुछ लोगों के लिए है। वह लोग जिन्हें रसूलअल्लाह ﷺ ने कहा है कि एक जमाअत कयामत तक हक पर रहेगी जो सहाबा के नक्शे कदम पर चले।

۩ रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया, “मेरी उम्मत में एक जमाअत हमेशा हक पर और गालिब रहेगी, और जो उनके मुखालिफ है वह उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगें, जब तक कि अल्लाह का हुक्म (कयामत) ना आजाये।”

(सुनन इब्ने माजा, जिल्द 1, हदीस 10)

तो रसूल अल्लाह ﷺ ने इसी जमाअत की खबर दी है कि यह शिर्क नहीं करेगी कयामत तक। अब देखते है कि क्या कलमा गोह मुस्लिम शिर्क कर सकता है:

बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

۩ वह लोग जो ईमान लाये, और ईमान लाने के बाद अपने ईमान में ज़ुल्म (शिर्क) शामिल नहीं किया, वही लोग (कयामत वाले दिन) अमन में होंगें और हिदायत याफ्ता होंगें।

(सुरह अल अनआम, आयत न. 82)

इस आयत का शाने नुज़ुल:

۩ जब यह आयत नाज़िल हुई तो मुस्लिमों ने अपने ऊपर बहुत मुश्किल महसुस की और पुछा ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ हममें से कौन है जिसने अपने ऊपर ज़ुल्म (गुनाह) ना किया हो। उन्होने फरमाया, “इस आयत का मतलब यह नहीं है बल्कि इसका मतलब अल्लाह की ईबादत में औरों को शरीक करना है। क्या तुमने नहीं सुना जो लुकमान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा था। फिर उनहोंने कुरआन की सुरह 31 आयत 13 पढ़ी जिसमें यह है कि, “ ऐ मेरे बेटें अल्लाह की ईबादत में किसी को शरीक ना करना, बेशक अल्लाह की ईबादत में औरों को शरीक करना एक बहुत बड़ा ज़ुल्म है।” 

(सहीह अल बुखारी, हदीस 3429)

۩ रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया: “जिस मुसलमान के जनाज़ा में ऐसे 40 आदमी शामिल हो जो अल्लाह के साथ शिर्क ना करते हों तो अल्लाह तआला इस (मय्यत के हक़ में) इनकी शिफारिश कुबुल करता है।”

(सहीह मुस्लिम, अल जनाइज़, हदीस 948)

तो अगर शिर्क खतम हो गया है मुस्लिम उम्मत से तो नबी ﷺ को यह कहने की ज़रूरत ही नहीं थी। अब जनाज़ा तो मुसलमान ही पढ़ने आता है कोई और नहीं।

۩ रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया तुम ज़रूर अपने से पहले लोगों की कदम बा कदम पैरवी करोंगें हत्ता कि अगर वह गोह (छिपकली के मुशाबाह रेंगने वाला एक जानवर) के सुराख में घुसें होंगें तो तुम भी इस में दाखिल होगे। अर्ज़ किया गया : या रसूलअल्लाह ﷺ ! क्या इनसे यहूद ओ नसारा मुराद है ?
रसूल अल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया: (अगर यह नहीं) तो और कौन?

(बुखारी, 1397, मुस्लिम 4822)

इस हदीस का मतलब बिल्कुल वाज़ेह हुआ कि जो-जो खराबी यहूद और नसारा में आयी थी वह सारी इस उम्मत में आयेगी। और शिर्क भी आयेगा इस उम्मत में अहले किताबों की तरह। हदीस इसको ज़्यादा वाज़ेह करती है:

۩ अबु वाक़िद अल लैसी रज़िअल्लाहु तआला अन्हं रिवायत करते है कि जब रसूलअल्लाह ﷺ गज़वा ए हुनैन तशरीफ ले जा रहे थे, रास्ते में आपका गुज़र मुश्रिकीन के एक पेड़ के पास से हुआ जो “ज़ात ए अन्वात” के नाम से मश्हूर था, वह लोग उस पर (बरकत हासिल करने के लिए) अपने हथियार लटकाया करते थे, कुछ मुसलमानों ने अर्ज़ किया: या रसूलअल्लाह ﷺ ! जिस तरह उनका यह “ज़ात ए अन्वात” है उसी तरह हमारे लिए भी कोई पेड़ फरमा दिजिए, नबी अकरम ने फरमाया:- “सुब्हान अल्लाह (अल्लाह पाक है उस शिर्क से जो लोग करते है) ! यह तो ऐसी ही बात है जिस तरह मूसा अलैहीस्सलाम की क़ौम ने कहा था : जिस तरह इन लोगों के बुत है हमारे लिए भी एक बुत बना दिजिए, (फिर रसूलअल्लाह  ने फरमाया) कसम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है, तुम ज़रूर अपने से पहलों के तरीक़ों पर चलोगें।”

(सुनन तिर्मिज़ी, किताबुल फितन, हदीस 2180, ईमाम तिर्मिज़ी और शैख अलबानी ने सहीह कहा है)

इस हदीस में आप ﷺ ने उस दरख्त को बुत के साथ तश्बीह दी। और आज भी यही हो रहा है कि कुछ मज़ारात जो होते है वहां दरख्त भी होते है जिस पर धागें बंधे हुए होते है।

۩ अम्मी आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां रिवायत करती है कि एक मर्तबा उम्मे हबीबा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां और उम्मे सलमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां ने रसूलअल्लाह से एक गिरजा (चर्च) जो की इथिओपिआ में था उसका ज़िक्र किया जिसमें तसवीर थी (दीवारों पर) यह सुन कर आप ने फरमाया, “यह लोग ऐसे है कि जब इन लोगों में कोई नेक बन्दा मर जाता है, तो यह लोग उसकी कब्र पर इबादत की जगह बना लेते है और रंग देते है उसको कुछ तसवीरों से। कयामत के दिन यह अल्लाह के नज़दीक सबसे बदतरीन मखलुक होंगें।”

(सहीह बुखारी 3873, सहीह मुस्लिम 1076)

۩ अम्मी आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां से रिवायत है कि नबी की जिस बीमारी में मौत हुई, उसमें आपने फरमाया, “यहूद और नसारा पर अल्लाह की लानत हो, उन्होंने अपने अम्बिया की कब्रों को ईबादतगाह बना लिया।”

۩ इस हदीस के बाद अम्मी आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां ने तशरीह की है। वह फरमाती हैं, “रसूल अल्लाह ﷺ हमें डराया करते थे ऐसा करने से।”

(सहीह मुस्लिम, हदीस 1082)

इस हदीस के बाद अम्मी आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां की दुसरी तशरीह है इस हदीस पर :

۩ अम्मी आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां फिर फरमाती हे कि अगर ऐसा डर ना होता कि लोग रसूलअल्लाह की कब्र पर सज्दे शुरू कर देंगें तो हम आप ﷺ की कब्र को ज़ियारत के लिये खुली छोड़ देते।

(सहीह बुखारी, हदीस 1330)

वज़ाहत: अम्मी आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां को 1400 साल पहले भी शिर्क का डर था जबकि वह बेहतरीन ज़माने में थी लेकीन यहां आज कल के मौलवी को कोई डर नहीं है शिर्क का इसलिए वह कहते फिरते है कि मुस्लम शिर्क नहीं कर सकते। हज़रत आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हां से ज़्यादा नबी ﷺ की बातों का फहम रखने वाला कौन था ?

۩ नबी ﷺ ने फरमाया: “या अल्लाह! मेरी कब्र को बुत ना बनने देना कि लोग उसको पूजना शुरू कर दें।”

(अहमद 7352, )

इस हदीस से यह भी पता चला कि जिसको भी पूजा जायेगा वह बुत होगा चाहे कब्र हो या पत्थर हो या दरख्त हो। 

۩ रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया, “मेरी तारीफ में इज़ाफा मत करना जैसे कि ईसाइयों ने ईसा इब्ने मरयम की करी थी। बेशक मैं अल्लाह का बंदा हुं, इसी लिए मुझे अब्दुल्लाह व रसूल अल्लाह कहकर पुकारा करों (अल्लाह का बंदा और रसूल)।”

(सहीह बुखारी, हदीस 654)

आप ﷺ को क्यों टेंशन थी। ये आज पता चल रहा है हमें जब हमें मस्जिद में सुनने को मिलता है “नूर उन मिन नूर अल्लाह” अल्लाह के नूर में से निकला हुआ नूर जबकि अल्लाह कह रहा है “लम यलिद वलम युलद” अल्लाह में से ना कोई निकला ना अल्लाह किसी में से निकला।

۩ हज़रत अबु हुरैरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हं कहते है रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया, हर नबी के लिए एक दुआ ऐसी है जो ज़रूर कबूल होती है तमाम अम्बियां ने वह दुआ दुनिया में ही मांग ली, लेकिन मैंने अपनी दुआ कयामत के दिन अपनी उम्मत की शफाअत के लिए महफूज़ कर रखी है, मेरी शफाअत इंशाअल्लाह हर उस शख्स के लिए होगी जो इस हाल में मरा कि उसने किसी को अल्लाह के साथ शरीक नहीं किया।

(सहीह मुस्लिम, किताब अल ईमान, हदीस 399)

अगर वाक़ई शिर्क खतम हो गया था तो यहां पर आप ﷺ को शर्त लगाने की क्या ज़रूरत थी।

और अगर अल्लाह ने बता ही दिया था नबी को कि उम्मत में शिर्क नहीं हो सकता है फिर नबी ﷺ को इतनी टेंशन क्यों थी कि वह बार-बार डरा रहे थे उम्मत को शिर्क करने से। क्या नबी ﷺ को अल्लाह के ऊपर यकीन नहीं था नाउज़ुबिल्लाह।

उम्मत में शिर्क होना कयामत की निशानी है :

۩ नबी ﷺ ने फरमाया कि कयामत उस वक्त तक नहीं आएगी जब तक मेरी उम्मत के कुछ कबिले मुश्रिकीन के साथ ना मिल जाए और वह बुत की ईबादत ना करने लगें।

(जामिआ तिर्मिज़ी, हदीस 2219, सहीह शैख ज़ुबैर अली ज़ई)

अल्लाह से दुआ है कि हमें शिर्क से बचाए और तौहीद पर मौत अता करें। आमीन