اقرأ باسم ربك الذي خلق

कब हमें बहस को आगे नहीं बढ़ाना है - व इज़ा ख़ात बहुमुल जाहिलोना क़ालू सलामा


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۩ अल्लाह पाक कुरान में फरमाते हैं

وَعِبَادُ الرَّحْمَـٰنِ الَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى الْأَرْضِ هَوْنًا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ الْجَاهِلُونَ قَالُوا سَلَامًا-

हमान के बंदे वो हैं जो ज़मीन पर नरम चलते हैं और जब जाहिल उनके मुंह लगते हैं तो कह देते हैं के सलाम है।(२५), आयत- ६३.

जब आप किसी के साथ गुफ्तगू करते हैं, तो गुफ्तगु हमेशा इल्मी तारीख से करनी चाहिए, इस्तेलाल के साथ करनी चाहिए।

आपको भी चाहिए कि आप दलील दे,विनम्र तारिके से अपनी बात दूसरे के सामने रखे, दूसरे पर कोई चीज़ थोपने की कोशिश ना करे, अपनी बात कहें, दूसरे की बात सुनें।

जब तक ये मुक़लमा हो रहा है और आप इल्म और इस्तेदलाल के साथ बात कर रहे हैं, कोई जहलत का सवाल नहीं है।

लेकिन जिसका वक्त कोई आदमी अपने मुंह में कफ भरने लग जाता है, आस्तीन चढ़ा लेता है, दलील को एक तरफ फेंक देता है, आप पर वो शब्बो ओ सितम करना शुरू कर देता है या ऐसा रवैय्या इख्तियार कर लेता है जिसमें सिर्फ जज़्बात ही जज़्बात है होते हैं, यानी अब आप अक़ली तबादला ए ख्यालात कर ही नहीं सकते उसके साथ, तो ये मौका होता है जिसको अरबी ज़ुबान में जहर कहा जाता है, जहालत जो हमारी उर्दू ज़ुबान में है उसका मतलब होता है नवकफ़ियात।

अरबी ज़ुबान में जहालत के और माने में इस्तमाल होता है वो ये है कि, आदमी जज़्बात से मगरूब हो गया, उसने इल्म ओ अक़ल को एक तरफ रख दिया, अब उससे अगर आप कोई बात करते हैं तो सिवाए इसके जवाब में आपको शब ओ सितम मिलेगा, आपको तंज़ ओ तहकीर से सबता पेश आएगा, कोई गुफ़्तगू नहीं हो पाएगा, कोई मुक़लमा नहीं हो पाएगा, मोहज़ब तारिके से आप बैठ भी नहीं पाएंगे, एक दूसरे की बात सुनने के लिए भी तैयार नहीं होंगे, होगी तो इल्ज़म तराशी होगी , तो ये सूरत जिसका वक्त पैदा हो जाए तो हमें वक्त हमें ये अल्लाह ताला ने हिदायत दी है कि फिर आप नम्रता के साथ रुक्सत हो जाए, या कालू सलामा जो है, इसकी अरबी ज़ुबान में ये ताबीर है कि नम्रता से फिर आप इजाज़त ले लें। 

यानी उस मौके के ऊपर आप फिर ऐसा ना करे कि दूसरा अगर जज़्बात से मगरूब हो गया है तो आप भी हो जाएं, दूसरे ने अगर तां ओ तश्नी शुरू कर दी है तो आप भी वही करे, दूसरे ने अगर ईंठ मारी है तो आप पत्थर ले कर उसे मारने लगे.

ये तारिका इख्तियार करने की हमको हिदायत दी गई है कि ये कोई हाल  में भी नहीं करना आपको।

चुनांचे, ये बताया गया है कि जब भी आप खुदा की बात लोगों को बताना चाहते है तो खुबसूरत हिदायत के साथ, हिकमत के साथ, दानयी के साथ, नरमी के साथ, दलील दे, दलील  सुने, दलील की बुनियाद पर बात करे, आपका रवैय्या एक नम्र तथा सुशील इंसान का होना चाहिए। दूसरे की इज़्ज़त की हिफ़ाज़त करते हुए अपनी बात पेश करें, हिकमत के साथ, हिदायत करनी है, ख़ूबसूरत हिदायत और फिर फरमाया गया  वा जादिलहुम बिल्लाती हिया अहसान अगर बहस की भी नौबत आ जाए तो वो भी इतना अच्छा होना चाहिए कि खुशगवार महोल में आप बात कर रहे हैं, आप दलील दे रहे हैं, दूसरा आपकी दलील की गलती आप पर वाज़ेह कर रहा है, ये तारिका दूसरो से भी आपको तवक्को करनी चाहिए कि वो इख्तियार करे, आपको भी यही इख्तियार करना चाहिए, इसे आप हटेंगे तो जहालत, दूसरा हटेगा तो जहर, और हम सोशल मीडिया पर देख ही रहे हैं कि लोग किस ज़ुबान और अंदाज़ में एक दूसरे से बहस करते हैं, कि नज़र ही नहीं आती कि दो मुसलमान आपस में गुफ़्तगू कर रहे हैं।

जहालत तो वो चीज़ है कि जिस तरह से सूरज नज़र आ जाता है, वो नज़र आ जाती है।

इल्म ओ इस्तेदलाल के साथ गुफ्तगू करने वाला शक्स कभी अपनी आवाज ऊंची नहीं करेगा, कभी आप पर तान ओ तश्नी नहीं करेगा, कभी आपकी नियत पर हमला नहीं करेगा, वो अपनी बात कहेगा, सादगी के साथ दलील देगा, आपकी बात सुनेगा, अच्छी बात है तो क़ुबूल कर लेगा, बात समझ नहीं आई तो नरमी से एराज़ कर लेगा। तो ये सही रवैय्या है जिसे हर शक्स को इख्तियार करना चाहिए। अल्लाह पाक फरमाते है,

۩ लोगो को अपने रब के रास्ते की तरफ हिकमत और ख़ूबसूरत हिदायत के साथ बुलाएं और उनसे बेहतरी तरीक़े से बहेस (गुफ़्तागू) करें।

सूरह नहल, आयत-१२५.