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ईद की नमाज़ के बाद मुबारकबाद देना, हाथ मिलाना और गले लगने के अहकाम


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अल्लाह पाक कुरआन में फरमाता है,

और जब तुम्हें सलामती की कोई दुआ दी जाए तो तुम उससे बेहतर सलामती की दुआ दो या उतना ही लौटा कर दो। यक़ीनन अल्लाह तआला हमेशा से हर चीज़ का पुरा हिसाब करने वाला है।

(सुरह निसा, आयत-86)

हाफिज़ इब्ने हजर अल-अस्कलानी कहते है,

“हमने महामिलियात में हसन सनद के साथ रिवायत किया है जाबिर बिन नुफैर से जो कहते है कि जब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सहाबा ईद के दिन एक दुसरे से मुलाकात करते थे तो एक दुसरे से यह कहा करते थे: “तक़ब्बल अल्लाहु मिन्ना व मिनकुम (अल्लाह हमारे ओर आपकी तरफ से ईबादत को कुबुल फरमाये)”।

फतहुल बारी, जिल्द2, पेज 446.

शैख इब्ने उसैमीन से पुछा गया, “ईद की मुबारकबाद देने के अहकाम क्या है और क्या कोई खास अल्फाज़ है जिसको इस्तेमाल किया जाए ?”

शैख इब्ने उसैमीन कहते है:

“ईद की मुबारकबाद देना जायज़ है और इसके लिए कोई जुमला मखसूस नहीं है, बल्कि लोगों को जिस तरह से मुबारकबाद देने का रिवाज हो वही जायज़ है जब तक उसमें कोई गुनाह शामिल ना हो।

बाज़ सहाबा किराम से भी ईद की मबारकबाद देना साबित है और अगर फर्ज करें साबित नहीं भी हो तो इस वक्त यह रिवाज का मुआमला बन चुका है जिसके लोग आदी है, और रमज़ान अल मुबारक के मुकम्मल होने पर और कियाम के बाद ईद के रोज़ एक दुसरे को मुबारकबाद देते है।”

शैख से पुछा गया: 

“नमाज़ ईद के बाद मुसाफा करने, गले मिलने और मुबारकबाद देने का क्या हुक्म है ?”

तो शैख का जवाब था:

“इन चीज़ों में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि लोग उसे बतौर ईबादत और अल्लाह तआला का कुर्ब समझ कर नहीं करते है, बल्कि लोग यह बतौर रिवाज और इज्ज़त व इकराद और एहतराम करते है, और जब तक शरीअत में किसी रस्म-रिवाज की मुमानिअत (मनाही) ना आये तो बुनियादी उसूल यह है कि उस चीज़ की इजाज़त होती है।”

(मजमुअ फतावा इब्ने उसैमीन, 16/208-210)

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